अभी कुछ दिन
पहले समाचार पढ़ा कि सरकार अब देश के हर जिले में एक बड़ा और सुविधाजनक चिकित्सालय
खोलने पर विचार कर रही है। यह खुशखबरी इसलिए है कि मनुष्य के लिए दाना-पानी के बाद
सबसे ज्यादा जरूरत स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाजनक उपलब्धता ही है। अपने मूल निवास में
ही यह सुविधा प्राप्त करने पर आम आदमी विश्वसनीय तरीके से सच्चा लोकतंत्र महसूस करेगा।
उसे लगेगा कि उसके आधार पर खड़ा तंत्र अब वह सब उपलब्ध कराने लगा है, जिसकी जरूरत दशकों से थी। लेकिन दूसरी ओर दुख भी है कि मनुष्य
की ऐसी आधारभूत आवश्यकता पर स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद अब विचार किया जा रहा है।
केन्द्र सरकार से यही अपेक्षा है कि वह अपने इस महत्वपूर्ण विचार का अतिशीघ्र क्रियान्वयन
करे। इस सार्वजनिक चिकित्सा सेवा की सरकारी कार्यप्रणालियों पर गहन अध्ययन होना चाहिए
ताकि यह लंबे समय तक सुविधाजनक तरीके से आम भारतीयों को लाभ पहुंचाती रहे। भारत के
प्रत्येक जिले में एक चिकित्सालय बनता है तो यह अच्छी उपलब्धि होगी। लेकिन इन चिकित्सालयों
में प्रदान की जानेवाली स्वास्थ्य सेवाओं का निष्पादन समुचित तरीके से होना चाहिए।
चिकित्सक, परिचर्या कर्मचारी-वर्ग और मरीजों के मध्य
उचित तालमेल होना चाहिए, ताकि जिस मानव सेवाधर्म
के लिए यह सेवा योजना बनी, उस पर निरंतर आगे बढ़ा
जा सके। चिकित्सा सेवा क्षेत्र में कुछ उपाय ऐसे होने चाहिए जिन्हें अपनाकर चिकित्सकों,
परिचर्या कर्मचारियों और चिकित्सालय के अन्य कर्मचारियों का
अपने कार्य के प्रति शुरूआती उत्साह, ईमानदारी सदैव बनी रहे। इसमें सर्वप्रथम सभी चिकित्सा
कर्मचारियों के कार्य- घंटों को कम किया जाना चाहिए। शल्य चिकित्सा जैसी आपात स्थिति
को छोड़कर बाकी सेवाएं प्रदान करने के लिए कर्मचारियों के कार्य-घंटे 8 के बजाय 4 किए जाने चाहिए। चार-चार
कार्य घंटों को दो पालियों में विभाजित किया जाए। कार्य-पालियों का परस्पर परिवर्तन
किया जाना चाहिए। इससे जहां कार्य के प्रति चिकित्सकों और अन्य कर्मचारियों में उत्तरदायित्व
और जोश की भावना घर करेगी वहीं चिकित्सा सेवा लेनेवालों को भी स्वास्थ्य सुरक्षा और
गुणवत्ता का अहसास होगा।
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