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इस ब्लॉग पर जो भी हिन्दी सामग्री प्रकाशित होगी, उसकी अंग्रेजी सामग्री भी साथ में प्रकाशित होगी। आशा है विवेकवान पाठकों को यह प्रयास अच्छा लगेगा। This Blog is publishing valuable Hindi materials simultaneously with English language. I hope intelligent readers shall appreciate this endeavor of mine.
सोमवार, 26 अगस्त 2013
शनिवार, 24 अगस्त 2013
अन्धविश्वास छोड़ आत्मविश्वास अपनाएं
अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के
अध्यक्ष मराठी समाजसेवी नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या। उन्हें निकट से गोली मारी
गई। वे धर्माडम्बरी, अन्धविश्वासी लोगों को जीवन को वास्तविकता
के धरातल पर देखने के लिए प्रेरित करते थे। आज के आम आदमी को किस दिशा में सोचनेवाला
कहें। वह अपनी सुरक्षा के लिए धार्मिक कुरीतियों के हवाले है या वो अपनी नजर में मौजूद
अपनी उन गलतियों से आत्मविनाशी हो-हो कर धर्मतन्त्र के तकाजे में अपने व्यक्तित्व
को बदलने की सोचता है, जो वह बचपन से लेकर अब तक करता आ रहा
है। ऐसे व्यक्तियों को यदि यथार्थपरक दृष्टि से सम्पूर्ण नरेन्द्र दाभोलकर जैसा
व्यक्ति जीवन को उस रुप में जीने को प्रेरित करे, जिस
रुप में वह है या हो सकता है तो निसन्देह धर्म के ठेकेदारों को इससे अपनी दूकानों
के बन्द होने का डर सताने लगता है। परिणामस्वरुप वे दाभोलकर जैसे जमीनी और यथार्थवादियों
को या तो मृत्यु दे देते हैं या उन्हें इस प्रकार प्रताड़ित करते हैं कि वे जीते
जी मौत के कब्जे में पहुंच जाते हैं।
बात
केवल समाजसेवी की मौत पर दुख मनाने या अन्धविश्वास की दूकानें चलानेवालों के
दुस्साहस के जीत की नहीं है। इन दो पूर्व और पुष्ट स्थितियों से परे हमें उस आम
जनता की दृष्टि को भी टटोलना चाहिए, जो चाहे-अनचाहे ही
अन्धविश्वास के मार्ग पर दूर तक निकल चुकी है। उसे वहां पर रोक कर वापस यथार्थ
जीवन के साथ संघर्ष करने और समय की सच्चाई से अवगत होने के लिए समझाना भी किसी चुनौती
से कम नहीं है। आज जिस देश का प्रशासन, कानून
अन्तर्विरोधों से जूझ रहा हो और वंचित तथा कमजोर आम जनता अनेक तरह की सामाजिक, आर्थिक
एवं नैतिक बुराइयों से लड़ रही हो, वहां जीवन के आराम
और सुख की थाह के लिए एकमात्र उपाय धर्ममार्ग ही बचता है। और ऐसे मार्गों के पथ-प्रदर्शक, सन्त-महात्मागण
ही जब अनाचार, कुकर्मों की नींव पर अपना धर्म-साम्राज्य
खड़ा करने पर तुले हों तो भक्तगणों की स्थिति 'धोबी
का कुत्ता घर का न घाट का' जैसी हो जाती है। इस
विकराल परिस्थिति में कौन सा अवतार हो, जो नई राह दिखाए जो
नए विवेक का संचार जनसाधारण में करे और इसके लिए स्वयं जनसाधारण कितना तैयार है
ये ऐसी बातें हैं जिनका विचार बारम्बार होना चाहिए।
यदि जनजागरण की ऐसी ज्योति नियमित रुप से प्रज्ज्वलित होगी
तो निश्चय ही अन्धविश्वास, ढोंग को पराजय
प्राप्त होगी। ऐसे वातावरण के पक्ष में अधिक से अधिक लोग अपने-अपने स्तर पर दिल
से सहयोग करेंगे तो वह दिन दूर नहीं होगा जब देश का जनजीवन खुशहाल हो जाएगा। नरेन्द्र
दाभोलकर जैसे सच्चे लोगों की वीरगति ही उन लोगों की आंखों पर पड़ी अन्धविश्वास
की पट्टी खोलने का काम भी करेगी, जिनके लिए वे कई
दशकों से इस समाज जागरण की दिशा में प्राणपण से सक्रिय थे। जनता को आत्मविश्वास के साथ यह स्वीकार करना सीखना होगा
कि ढोंग और पाखण्ड की विचारधारा से धर्ममार्ग पर चल कर किसी का कोई उद्धार नहीं हो
सकता। जीवन में पाप-पुण्य की अवधारणा जीते जी ही है। अच्छे कार्य करेंगे तो नित पुण्य का अनुभव होगा और बुराई का चयन करने पर पाप की विभीषिका का दंश भी तत्काल ही झेलना
पड़ेगा। इसलिए निर्णय जनता के हाथ है कि उसे कौन सा मार्ग चुनना है।
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