बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

नशामुक्ति की प्रेरणादायी पहल




गांधी जी ने भी कुछ समय तक धूम्रपान किया। लेकिन इसे छोड़ने पर उन्‍हें ये प्रश्‍न कचोटता रहा कि लोग इसका सेवन क्‍यों करते हैं?

नशामुक्ति की प्रेरणादायी पहल

एक के बाद एक अनेक राज्यों ने अपने यहां गुटखा बनाने] बेचने और खाने पर प्रतिबन्ध लगाने का अध्यादेश लागू कर दिया है। इसी क्रम में ग्रेटर नोएडा] उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों ने भी गुटखा] तम्बाकू और मदिरा विक्रय] क्रय और सेवन पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दिया है। वहां इन्हें बेचनेवालों पर एक हजार] सेवन करनेवालों पर पांच सौ रुपए का दण्ड और इनकी बिक्री व प्रयोग की सूचना देनेवाले को सौ रूपए का ईनाम घोषित किया गया है। इन अच्छी बातों की सामूहिक सामाजिक पहल हमें नई उमंग और ऊर्जा से भर देती है। लगने लगता है कि समाज में सब कुछ बुरा ही नहीं है। कुछ अच्छे काम भी हो रहे हैं। किन्तु यह दुखद है कि इस प्रकार का सकारात्मक और समाज सुधार कार्य अधिक प्रचारित नहीं हो पाता है। जनसंचार माध्यम नकारात्मक घटनाओं-परिघटनाओं पर अधिक केन्द्रित हो गए हैं। उनका ध्यान आंतकी गतिविधियों की तन्तुपरक खोज करके उसके समाचार प्रसारित करने पर लगा रहता है। इसके अलावा इलेक्‍ट्रानिक मीडिया द्वारा अनुपयोगी घटनाओं को विस्तृत रूप से प्रकाशित करना या उनको बारम्बार सुनाने की कार्यप्रणाली भी परोक्ष रूप से अनुचित और असामाजिक परिस्थितियों का निर्माण करती है। क्या जिम्मेदार लोगों] मीडिया संचालनकर्ताओं और कर्ताधर्ताओं को यह प्रतीत नहीं होता कि आंतकी गतिविधियों में शामिल लोगों का महिमामण्डन नहीं होना चाहिए। उन्हें उनके नाम] देश और इतिहास सहित परोसे जाने की आवश्यकता क्यों आन पड़ती हैआंतकवादियों को उनके किए की सजा देने के लिए सारी कसरत जब सुरक्षा बलों को करनी होती है तो आम आदमी को खबरिया चैनलों और अखबारों के माध्यम से इनकी एक-एक हरकत से क्यों परिचित कराया जाता है! देखा जाए तो इन खबरों को इतना विस्तार देने की कोई जरूरत ही नहीं है। लगता है टीआरपी और विज्ञापन के लालच ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को अभिभूत कर दिया है। ऐसी गतिविधियों में दिल से योगदान करने के लिए तत्पर] दिग्भ्रमित नौजवान मीडिया में परोसी जानेवाली समाज विरोधी कार्यों की बढ़ती रपटों से प्रोत्साहित होते हैं।
       हम सब का यह सामाजिक कर्तव्य है कि सकारात्मक स्थितियों और खबरों का ज्यादा प्रसार हो। अब जब देश में तम्बाकू और शराब के प्रतिबन्ध के लिए लोगों में जागरूकता आई है तो शासन-प्रशासन] प्रेस-पुलिस सभी की जिम्मेदारी है कि इस मुहिम को सामाजिक] राजनीतिक तरीके से आगे बढ़ाया जाए। इस समाजोपयोगी काम में अधिक से अधिक योगदान देकर जीवन की दशा-दिशा को पूर्णतः नशामुक्त करके स्वस्थ बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है कि समाज के कुछ लोगों ने वर्षों से चली आ रही नशे की बीमारी का उन्मूलन करने की ठानी है। इससे भी बड़ी और प्रेरणाप्रद बात यह है कि उन्होंने इस काम के लिए नशे से पीड़ित और इससे विलग लोगों को एकजुट करके यह अभियान चलाया है। चूंकि अधिकांश समाज नशे की चपेट में है इसलिए अभी यह कदम ज्यादा मुखर और प्रशंसनीय नहीं बन सका। लेकिन जो लोग नशा नहीं करते उनके लिए तो सचमुच ही ये बहुत बड़ी और महान उपलब्धि है।

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